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Friday, July 7, 2017

Rath Yatra Mahamahotsav



Rath Yatra Mahamahotsav 


'तुलसी-लसित-सीतावरम्, 

चैतन्य-नुत-मुरलीधरम् । 
भैरवं भजे गजाननम्, 
खग-वाहनं ससुदर्शनम् । 
इन्दिरेशं विश्‍व-वेशं बुद्ध-रूपमनिन्दितम्, 
प्रणमामि तं भुवि वन्दितम्, 
जन-हृदय-मन्दिर- नन्दितम्, प्रणमामि तम् ॥' 
'रथ-महोत्सवे जगत्पते ! 
त्वयि मन्दिराद्‍ बहिरागते । 
जन-लोचनं गोविन्द ! ते, 
शुभ- दर्शन-रसं विन्दते । 
नन्दिघोष- स्यन्दन-गतं शङ्ख-घण्टा-नादितम्, 
प्रणमामि तं भुवि वन्दितम्, 
जन-हृदय- मन्दिर- नन्दितम् । 
जगन्नाथं परात्मानं सर्व-तनुषु स्पन्दितम्, 
प्रणमामि तम् ॥' (पुरुषोत्तम-गीतिका)

अन्त में, श्रीजगन्नाथ महाप्रभु के चरणारविन्द में प्रार्थना करते हैं कि उनके पावन नाम के स्मरण से 
परस्पर भ्रातृत्व, मैत्री और श्रद्धा सदैव विकशित रहें एवं सबका जीवन सुख-शान्तिमय हो ।

'मैत्रीं प्रशान्तिं सुखदां चिरन्तनं
तनोतु विश्वे तव नाम-चिन्तनम् ।
आत्मीयता-रूप-रसो महीयतां
प्रभो जगन्नाथ ! कृपा विधीयताम् ॥'
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Tuesday, July 4, 2017

God's unconditional love


एक बुढ़िया माई को उनके गुरु जी ने बाल-गोपाल की एक मूर्ती देकर कहा- "माई ये तेरा बालक है,इसका अपने बच्चे के समान प्यार से लालन-पालन करती रहना ।"



बुढ़िया माई बड़े लाड़-प्यार से ठाकुर जी का लालन-पालन करने लगी ।
एक दिन गाँव के बच्चों ने देखा माई मूर्ती को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है ! बच्चो ने माई से हँसी की और कहा - "अरी मैय्या सुन यहाँ एक भेड़िया आ गया है, जो छोटे बच्चो को उठाकर ले जाता है।
मैय्या अपने लाल का अच्छे से ध्यान रखना, कही भेड़िया इसे उठाकर ना ले जाये..!" बुढ़िया माई ने अपने बाल-गोपाल को उसी समय कुटिया मे विराजमान किया और स्वयं लाठी (छड़ी) लेकर दरवाजे पर बैठ गयी।
अपने लाल को भेड़िये से बचाने के लिये बुढ़िया माई भूखी -प्यासी दरवाजे पर पहरा देती रही। पहरा देते-देते एक दिन बीता, फिर दुसरा, तीसरा, चौथा और पाँचवा दिन बीत गया।.....
बुढ़िया माई पाँच दिन और पाँच रात लगातार, बगैर पलके झपकाये -भेड़िये से अपने बाल-गोपाल की रक्षा के लिये पहरा देती रही । उस भोली-भाली मैय्या का यह भाव देखकर, ठाकुर जी का ह्रदय प्रेम से भर गया, अब ठाकुर जी को मैय्या के प्रेम का प्रत्यक्ष रुप से आस्वादन करने का लोभ हो आया !
भगवान बहुत ही सुंदर रुप धारण कर, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर माई के पास आये। ठाकुर जी के पाँव की आहट पाकर मैय्या ड़र गई कि "कही दुष्ट भेड़िया तो नहीं आ गया, मेरेलाल को उठाने !" मैय्या ने लाठी उठाई और भेड़िये को भगाने के लिये उठ खड़ी हूई !
तब श्यामसुंदर ने कहा - "मैय्या मैं हूँ, मैं तेरा वही बालक हूँ -जिसकी तुम रक्षा करती हो!" माई ने कहा - "क्या? चल हट तेरे जैसे बहुत देखे है, तेरे जैसे सैकड़ो अपने लाल पर न्यौछावर कर दूँ, अब ऐसे मत कहियो ! चल भाग जा यहा से..!
" (बुढ़िया माई ठाकुर जी को भाग जाने के लिये कहती है, क्योकि माई को ड़र था की कही ये बना-ठना सेठ ही उसके लाल को ना उठा ले जाये )।
ठाकुर जी मैय्या के इस भाव और एकनिष्ठता को देखकर बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गये । ठाकुर जी मैय्या से बोले :-"अरी मेरी भोली मैय्या, मैं त्रिलोकीनाथ भगवान हूँ, मुझसे जो चाहे वर मांग ले, मैं तेरी भक्ती से प्रसन्न हूँ" बुढ़िया माई ने कहा - "अच्छा आप भगवान हो, मैं आपको सौ-सौ प्रणाम् करती हूँ ! कृपा कर मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे प्राण-प्यारे लाल को भेड़िया न ले जाय" अब ठाकुर जी और ज्यादा प्रसन्न होते हुए बोले - "तो चल मैय्या मैं तेरे लाल को और तुझे अपने निज धाम लिए चलता हूँ, वहाँ भेड़िये का कोई भय नहीं है।" इस तरह प्रभु बुढ़िया माई को अपने निज धाम ले गये।
जय हो भक्त और भगवान की...!! ठाकुर जी को पाने का सबसे सरल मार्ग है, ठाकुर जी को प्रेम करो - निष्काम प्रेम जैसे बुढ़िया माई ने किया !

हरे कृष्णा | जय जय श्री राधे। श्री कृष्ण शरणम ममः!!