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Wednesday, June 28, 2017

महाप्रसाद



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Mahaprasad 

is of two types. 

One is Sankudi mahaprasad and the other is Sukhila mahaprasad.

  • Sankudi mahaprasad includes items like rice, ghee rice, mixed rice, cumin seed and asaphoetida-ginger rice mixed with salt, and dishes like sweet dal, plain dal mixed with vegetables, mixed curries of different types, Saaga Bhaja', Khatta, porridge etc. All these are offered to the Lord in ritualistic ways. It is said that every day 56 types of Prasad are offered to the Lord during the time of worship and all of these are prepared in the kitchens of the temple and sold to the devotees in Ananda Bazaar by the Suaras who are the makers of the Prasad.
  • Sukhila mahaprasad consists of dry sweetmeats.



श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद माना जाता है, जबकि अन्य तीर्थों के प्रसाद को सामान्यतः प्रसाद ही कहा जाता है। श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद का स्वरूप महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के द्वारा मिला। कहते हैं कि महाप्रभु बल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उनके एकादशी व्रत के दिन पुरी पहुँचने पर मन्दिर में ही किसी ने प्रसाद दे दिया। महाप्रभु ने प्रसाद हाथ में लेकर स्तवन करते हुए दिन के बाद रात्रि भी बिता दी। अगले दिन द्वादशी को स्तवन की समाप्ति पर उस प्रसाद को ग्रहण किया और उस प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ। नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद विशेष रूप से इस दिन मिलता है।

Friday, June 16, 2017

Lord Jagannath's Rath Yatra

स्कंद पुराण में है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का वर्णन


   आषाढ़ शुक्ल द्वितीया रथयात्रा उत्सव का दिन है। इस दिन भारत के विभिन्न अंचलों में भगवान की शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें उड़ीसा राज्य में पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा सर्वाधिक प्रसिद्ध है। सामान्यत: भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी आराधना होती है तथा मुरली मनोहर श्रीकृष्ण के साथ राधा की भी पूजा-अर्चना की जाती है।

इस संबंध में स्कंद पुराण के उत्कल खंड में एक आख्यान के अनुसार- भगवान गोपीनाथ श्रीकृष्ण द्वारका में अपने महल में शयन कर रहे थे। सोते समय उनके मुंह से राधा नाम निकल गया। उनकी रानियों ने राधा के बारे में जानना चाहा और इस हेतु रोहिणी के पास गर्इं। रोहिणी बंद कमरे में रानियों को कृष्ण व राधा सहित गोपियों की ब्रजलीला की कथाएं सुनाना प्रारंभ कीं। कथा के समय श्रीकृष्ण व बलराम अंदर न आ सकें, इसके लिए सुभद्रा को द्वार पर बैठा दिया था। कुछ समय पश्चात भगवान श्रीकृष्ण व बलराम अंत:पुर की ओर आए किन्तु सुभद्रा ने उन्हें अंदर जाने रोक दिया। रोहिणी रानियों को जो कथाएं सुना रहीं थीं, वह भगवान श्रीकृष्ण के कानों में पड़ने लगीं। अब तीनों की उन कथाओं को सुनने लगे और अनिर्वचनीय भाव अवस्था को प्राप्त होने लगे। तीनों प्रतिमा की भांति स्थावर व निश्चल हो गए। इसी समय नारदजी आए और भगवान की दशा देखकर आश्चर्यचकित रह गए। नारदजी ने भगवान से प्रार्थना की कि वे सदा इस रूप में पृथ्वी में निवास करें। भगवान ने नारदजी की प्रार्थना स्वीकार कर लिया और पूर्व काल में राजा इन्द्रद्युम और रानी विमला को दिए गए वरदानों को सम्मिलित करते हुए नीलांचल क्षेत्रपुरी में अवतीर्ण होने का आश्वासन दिया। कलियुग का जब आगमन हुआ तो मालव प्रदेश के राजा इन्द्रद्युम को नीलांचल पर्वत पर स्थित देवपूजित नीलमाधव के दर्शन की उत्कंठा हुई किन्तु जब तक राजा पहुंचता तब तक देवता नीलमाधव के विग्रह को लेकर देवलोक चले गए। इससे राजा बहुत उदास हुआ। राजा की उदासी देखकर भगवान ने आकाशवाणी की कि- भगवान जगन्नाथ दारूरूप में दर्शन देंगे। इन्द्रद्युम को कुछ समय पश्चात समुद्र के किनारे टहलते हुए लकड़ी की एक शिला तैरती हुई मिली, इन्द्रद्युम को भगवान की आकाशवाणी याद आई और उस लकड़ी की शिला से भगवान जगन्नाथ का विग्रह बनवाने का निश्चय किया। इतने में विश्वकर्माजी बढ़ई के वेश में इन्द्रद्युम के पास आए और भगवान का विग्रह बनाने की प्रार्थना की। इन्द्रद्युम इस विचित्र संयोग से उत्साहित हुआ और उसने इसी समय विग्रह निर्माण का आदेश दे दिया। बढ़ई वेशधारी विश्वकर्मा जी विग्रह का निर्माण इस शर्त पर करने के लिए राजी हुए कि इसके निर्माण के दौरान कोई भी व्यक्ति उनके पास नहीं आएगा। यदि कोई व्यक्ति उनके पास आया तो वे निर्माण को अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। राजा इन्द्रद्युम ने यह बात स्वीकार कर ली। गुण्डिया नामक स्थान पर एक कक्ष में निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ। कुछ दिन व्यतीत होने पर राजा इन्द्रद्युम को विग्रह निर्माण में रत वृद्ध बढ़ई के भूख-प्यास की चिंता हुई। इस उद्देश्य से वह बढ़ई के पास गया और शर्त के मुताबिक विश्वकर्माजी निर्माण कार्य छोड़कर अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार प्रतिमा का कार्य अधूरा रह गया। राजा को अधूरे निर्माण से बड़ी निराशा हुई, तभी एक और आकाशवाणी हुई- हम इसी रूप में रहना चाहते हैं, अत: तुम तीनों प्रतिमाओं को विधिवत अलंकृत करवाकर प्रतिष्ठित करवा दो। राजा ने भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की उक्त तीनों अधूरी प्रतिमाओं को एक विशाल मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठित करवा दिया। इस प्रकार पुरी के जगन्नाथ मंदिर और विग्रह की स्थापना हुई। भगवान जगन्नाथ ने पुरी में नवीन मंदिर में अपनी स्थापना के समय राजा इन्द्रद्युम को कहा था कि उन्हें अपना जन्म स्थान प्रिय है। अत: वे वर्ष में एक बार अवश्य वहां पधारेंगे। भगवान के इस आदेश को क्रियान्वित करने के लिए इन्द्रद्युम के समय से ही आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को रथयात्रा प्रारंभ हुई। जो आज तक अनवरत रूप से जारी है।

साभार :-

Friday, August 5, 2016

Chandigarh Rath Yatra 2016


चंडीगढ़ : योगेश्वर भगवान् श्री कृष्ण के प्राकट्य महोत्सव "जन्माष्टमी" के उपलक्ष्य पर एक बहुत ही भव्य रथ यात्रा का आयोजन दिनांक 21 अगस्त 2016 को चंडीगढ़ में  किया जा रहा है | यह यात्रा सुन्दर शहर चंडीगढ़ के औधोगिक क्षेत्र फेस 1 में  भगवान श्री जगन्नाथ , बलभद्र और  सुभद्रा जी के दिव्य विग्रह स्थापित करने एवं   रथ पूजन के पश्चात प्रारंभ होकर , शहर के विभिन्न हिस्सों से होते हुए, शिव शक्ति मंदिर सेक्टर 30 चंडीगढ़ में समाप्त होगी | भगवान् का  रथ सेक्टर 30 पहुचने पर महाआरती  एवं लंगर प्रसाद वितरण के बाद यात्रा समाप्त होगी|

Bhagwan Jagannath Rath Yatra Chandigarh 2016

Bhagwan Jagannath Rath Yatra Chandigarh 2016

Bhagwan Jagannath Rath Yatra Chandigarh 2016 on 21 August 2016 Starting From Industrial Aria Phase II ,  via Centra Mall, Sector 29 Inner Market, Sai Baba Mandir Sector 29, Baba Balak Nath Mandir Sector29, Inner Market Sector 30, Kali Mata Mandir Sector 30, Nirankari Bhawan Sector 30, Sector 20 Market, Gaudiy Math Mandir Sector 20, Ligth Point 20/21, Ligth Point 18/19, Sector 19 Market, Sector 27 Market , End Point Shiv Shakti Mandir Sector 30 Chandigarh