एक गोपी के घर लाला माखन खा रहे हैं उसी समय गोपी ने लाला को पकड़ लिया। तब कन्हैया बोले तेरे धनी की सौगंध खाकर कहता हूँ अब फिर कभी भी तेरे घर मे नही आऊंगा।
गोपी ने कहा- मेरे धनी की सौगंध क्यों खाता है।
कन्हैया ने कहा- तेरे बाप की सौगंध।
बस गोपी और ज्यादा खीझ जाती है और लाला को धमकाती है। परंतु तू मेरे घर आया ही क्यों....!!
कन्हैया ने कहा- अरी सखी- तू रोज कथा मे जाती है, फिर भी तू मेरा तेरा छोड़ती नही। इस घर का मै धनी हूँ। यह मेरा घर है।
गोपी को आनंद हुआ कि मेरे घर को कन्हैया अपना घर मानते हैं, कन्हैया तो सबका मालिक है।
सभी घर उसी के हैं उसको किसी की आज्ञा लेने कि जरूरत नही।
गोपी कहती है- तूने माखन क्यों खाया?
लाला ने कहा- माखन किसने खाया है।
इस माखन मे चींटी चढ़ गई थी तो उसे निकालने को हाथ डाला, इतने मे ही तू टपक पड़ी।
गोपी कहती है - परंतु लाला! तेरे होठों के ऊपर भी तो माखन चिपका हुआ है।
कन्हैया ने कहा- चींटी निकालता था, तभी होठों के ऊपर भी मक्खी बैठ गई उसको उड़ाने लगा तो माखन होठों पर लग गया होगा।
कन्हैया जैसे बोलते हैं, ऐसा बोलना किसी को आता नही। कन्हैया जैसे चलते हैं, वैसे चलना भी किसी को आता नही।
गोपी ने पीछे लाला को घर मे खम्भे के साथ डोरी से बाँध दिया है। कन्हैया का श्रीअंग बहुत ही कोमल है।
गोपी ने जब डोरी कस कर बाँधी तो लाला की आँख मे पानी आ गया। गोपी को दया आई। उसने लाला से पूछा- लाला, तुझे कोई तकलीफ है क्या?
लाला ने गर्दन हिलाकर कहा- मुझे बहुत दुख रहा है। डोरी जरा ढीली करो।
गोपी ने विचार किया कि लाला को डोरी से कस कर बाँधना ठीक नही। मेरे लाला को दुःख होगा इसलिए गोपी ने डोरी थोड़ी ढीली रखी और सखियों को खबर देने गई कि मैने लाला को बाँधा है।
तुम लाला को बाँधो परंतु किसी से कहो नहीं। तुम खूब भक्ति करो परंतु उसे प्रकाशित मत करो। भक्ति प्रकाशित हो जायेगी तो भगवान चले जायेंगे।
भक्ति का प्रकाश होने से भक्ति बढ़ती नही, भक्ति मे आनंद आता नही।
बालकृष्ण सूक्ष्म शरीर करके डोरी से बाहर निकल गये और गोपी को अंगूठा दिखाकर कहा तुझे बाँधना ही कहा आता है।
गोपी कहती है - तो मुझे बता, किस तरह से बाँधना चाहिए।
गोपी को तो लाला के साथ खेल करना था।
लाला गोपी को बाँधते हैं...
योगीजन मन से...श्रीकृष्ण का स्पर्श करते हैं तो समाधि लग जाती है .....
यहाँ तो गोपी को प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण का स्पर्श हुआ है।
गोपी लाला के दर्शन मे तल्लीन हो जाती है। गोपी को ब्रह्म ज्ञान हो जाता है।
लाला ने गोपी को बाँध दिया।
गोपी कहती है - लाला छोड़! छोड़ !
लाला कहते हैं, मुझे बाँधना आता है ...
छोड़ना तो आता ही नही।
पर यह जीव (मानव) एक ऐसा प्राणी है, जिसको छोड़ना आता है। चाहे जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध क्यों न हो परंतु स्वार्थ सिद्ध होने पर उसको एक क्षण में ही छोड़ सकता है।
पर परमात्मा एक बार बाँधने के बाद छोड़ते नही।