Friday, October 20, 2017

Tuesday, October 3, 2017

लाला की शरारतें

कृष्ण माखन चोरी लीला 


लाला की शरारतें

एक गोपी के घर लाला माखन खा रहे हैं उसी समय गोपी ने लाला को पकड़ लिया। तब कन्हैया बोले तेरे धनी की सौगंध खाकर कहता हूँ अब फिर कभी भी तेरे घर मे नही आऊंगा।
गोपी ने कहा- मेरे धनी की सौगंध क्यों खाता है।
कन्हैया ने कहा- तेरे बाप की सौगंध।
बस गोपी और ज्यादा खीझ जाती है और लाला को धमकाती है। परंतु तू मेरे घर आया ही क्यों....!!
कन्हैया ने कहा- अरी सखी- तू रोज कथा मे जाती है, फिर भी तू मेरा तेरा छोड़ती नही। इस घर का मै धनी हूँ। यह मेरा घर है।
गोपी को आनंद हुआ कि मेरे घर को कन्हैया अपना घर मानते हैं, कन्हैया तो सबका मालिक है।
सभी घर उसी के हैं उसको किसी की आज्ञा लेने कि जरूरत नही।
गोपी कहती है- तूने माखन क्यों खाया?
लाला ने कहा- माखन किसने खाया है।
इस माखन मे चींटी चढ़ गई थी तो उसे निकालने को हाथ डाला, इतने मे ही तू टपक पड़ी।
गोपी कहती है - परंतु लाला! तेरे होठों के ऊपर भी तो माखन चिपका हुआ है।
कन्हैया ने कहा- चींटी निकालता था, तभी होठों के ऊपर भी मक्खी बैठ गई उसको उड़ाने लगा तो माखन होठों पर लग गया होगा।
कन्हैया जैसे बोलते हैं, ऐसा बोलना किसी को आता नही। कन्हैया जैसे चलते हैं, वैसे चलना भी किसी को आता नही।
गोपी ने पीछे लाला को घर मे खम्भे के साथ डोरी से बाँध दिया है। कन्हैया का श्रीअंग बहुत ही कोमल है।
गोपी ने जब डोरी कस कर बाँधी तो लाला की आँख मे पानी आ गया। गोपी को दया आई। उसने लाला से पूछा- लाला, तुझे कोई तकलीफ है क्या?
लाला ने गर्दन हिलाकर कहा- मुझे बहुत दुख रहा है। डोरी जरा ढीली करो।
गोपी ने विचार किया कि लाला को डोरी से कस कर बाँधना ठीक नही। मेरे लाला को दुःख होगा इसलिए गोपी ने डोरी थोड़ी ढीली रखी और सखियों को खबर देने गई कि मैने लाला को बाँधा है।
तुम लाला को बाँधो परंतु किसी से कहो नहीं। तुम खूब भक्ति करो परंतु उसे प्रकाशित मत करो। भक्ति प्रकाशित हो जायेगी तो भगवान चले जायेंगे।
भक्ति का प्रकाश होने से भक्ति बढ़ती नही, भक्ति मे आनंद आता नही।
बालकृष्ण सूक्ष्म शरीर करके डोरी से बाहर निकल गये और गोपी को अंगूठा दिखाकर कहा तुझे बाँधना ही कहा आता है।
गोपी कहती है - तो मुझे बता, किस तरह से बाँधना चाहिए।
गोपी को तो लाला के साथ खेल करना था।
लाला गोपी को बाँधते हैं...
योगीजन मन से...श्रीकृष्ण का स्पर्श करते हैं तो समाधि लग जाती है .....
यहाँ तो गोपी को प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण का स्पर्श हुआ है।
गोपी लाला के दर्शन मे तल्लीन हो जाती है। गोपी को ब्रह्म ज्ञान हो जाता है।
लाला ने गोपी को बाँध दिया।
गोपी कहती है - लाला छोड़! छोड़ !
लाला कहते हैं, मुझे बाँधना आता है ...
छोड़ना तो आता ही नही।
पर यह जीव (मानव) एक ऐसा प्राणी है, जिसको छोड़ना आता है। चाहे जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध क्यों न हो परंतु स्वार्थ सिद्ध होने पर उसको एक क्षण में ही छोड़ सकता है।
पर परमात्मा एक बार बाँधने के बाद छोड़ते नही।

दर्पण दिखाने की सेवा



इस बहाने मैं हँस तो लेता हूँ।


एक सासु माँ और बहू थी।

सासु माँ हर रोज ठाकुर जी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी।

एक दिन शरद रितु मेँ सासु माँ को किसी कारण वश शहर से बाहर जाना पडा।

सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेँगी।
सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ।

सासु माँ ने बहु ने बुलाया ओर समझाया के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है।
कैसे ठाकुर जी को लाड लडाना है।
सासु माँ ने बहु को समझाया के बहु मैँ यात्रा पर जा रही हूँ और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।
सासु माँ ने बहु को समझाया देख ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह ठाकुर जी को जगाना।
फिर ठाकुर जी को मंगल भोग कराना।
फिर ठाकुर जी स्नान करवाना।
ठाकुर जी को कपड़े पहनाना।
फिर ठाकुर जी का श्रृंगार करना ओर फिर ठाकुर जी को दर्पण दिखाना।
दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंस्ता हुआ मुख देखना बाद मेँ ठाकुर जी राजभोग लगाना।

इस तरह सासु माँ बहु को सारे सेवा नियम समझाकर यात्रा पर चली गई।

अब बहु ने ठाकुर जी की सेवा कार्य उसी प्रकार शुरु किया जैसा सासु माँ ने समझाया था।

ठाकुर जी को जगाया नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।

सासु माँ ने कहा था की दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ देखकर ही राजभोग लगाना।

दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख ना देखकर बहु को बड़ा आशर्चय हुआ।

बहु ने विचार किया शायद मुझसे सेवा मेँ कही कोई गलती हो गई हैँ तभी दर्पण मे ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिख रहा।

बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।
लेकिन ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा।

बहु ने फिर विचार किया की शायद फिर से कुछ गलती हो गई।
बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।

जब ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नही दिखा बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया ।

ऐसे करते करते बहु ने ठाकुर जी को 12 बार स्नान किया।
हर बार दर्पण दिखाया मगर ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा।

अब बहु ने 13वी बार फिर से ठाकुर जी को नहलाने की तैयारी की।

अब ठाकुर जी ने विचार किया की जो इसको हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा तो ये तो आज पूरा दिन नहलाती रहेगी।

अब बहु ने ठाकुर जी को नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।

अब बहु ने जैसे ही ठाकुर जी को दर्पण दिखाया तो ठाकुर जी अपनी मनमोहनी मंद मंद मुस्कान से हंसे।
बहु को संतोष हुआ की अब ठाकुर जी ने मेरी सेवा स्वीकार करी।

अब यह रोज का नियम बन गया ठाकुर जी रोज हंसते।
सेवा करते करते अब तो ऐसा हो गया के बहु जब भी ठाकुर जी के कमरे मेँ जाती बहु को देखकर ठाकुर जी हँसने लगते।

कुछ समय बाद सासु माँ वापस आ गई।
सासु माँ ने ठाकुर जी से कहा की प्रभु क्षमा करना अगर बहु से आपकी सेवा मेँ कोई कमी रह गई हो तो अब मैँ आ गई हूँ आपकी सेवा पूजा बड़े ध्यान से करुंगी।

तभी सासु माँ ने देखा की ठाकुर जी हंसे और बोले की मैय्या आपकी सेवा भाव मेँ कोई कमी नहीँ हैँ आप बहुत सुंदर सेवा करती हैँ लेकिन मैय्या दर्पण दिखाने की सेवा तो आपकी बहु से ही करवानी है...
इस बहाने मेँ हँस तो लेता हूँ।

बोलो ठाकुर प्यारे की जय।
राधे राधे जय श्री राधे